March 29, 2024

प्रधानमंत्री मोदी को इतना पसंद आया उत्तराखंड का 1 फल (Kafal) कि सीएम धामी को पत्र लिखकर दी जानकारी…

0

Kafal : Prime Minister Narendra Modi was highly impressed with the biodiversity and juicy taste of the caravans in Uttarakhand. He expressed his appreciation in a letter addressed to Uttarakhand Chief Minister Pushkar Dhami. The letter acknowledges the medicinal properties of the fruit, Kafal, and its cultural significance in Uttarakhand. The Prime Minister also encourages tourists to visit Uttarakhand and experience the diverse mountain fruits. Furthermore, he praises the efforts to promote better cultivation methods and create a suitable market for Kafal, which has provided economic strength to the local population.

नवीन समाचार, देहरादून, 5 जुलाई 2023। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जैवविविधता से परिपूर्ण उत्तराखंड के काफलों (Kafal) (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-Myrica esculenta)का रसीला स्वाद बहुत भाया है। मोदी काफल के स्वाद से इतने प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने इसके लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को बकायदा इसके लिए पत्र भेजा है।

Kafalपत्र में श्री मोदी ने कहा है, ‘देवभूमि उत्तराखंड से आपके द्वारा भेजे गए रसीले और दिव्य मौसमी फल ‘काफल’ प्राप्त हुए। इस स्नेहपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आपका हृदय से आभार। हमारी प्रकृति ने हमें एक से बढ़कर एक उपहार दिए हैं और उत्तराखंड तो इस मामले में बहुत धनी है, जहां औषधीय गुणों से युक्त कंद-मूल और फल-फूल प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। काफल ऐसा ही एक फल है जिसके औषधीय गुणों का उल्लेख प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है।

फल के साथ ही इन पेड़ की छाल, फूल, बीज का भी उपयोग आयुर्वेद में उपचार के लिए किया जाता है। काफल उत्तराखंड की संस्कृति में भी रचा बसा है। इसका उल्लेख विभिन्न रूपों में यहां के लोकगीतों में भी पाया जाता है।

उत्तराखण्ड जाएं और वहां मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पहाड़ी फलों का स्वाद ना लें, तो यात्रा अधूरी लगती है। गर्मियों के मौसम में पक कर तैयार होने वाले काफल राज्य में आने वाले पर्यटकों में भी खासे लोकप्रिय हैं। अपनी बड़ी हुई मांग के कारण मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला यह फल स्थानीय लोगों को आर्थिक मजबूती भी प्रदान कर रहा है।

मुझे खुशी है कि काफल की बेहतर पैदावार के तरीकों को अपनाकर और इसके लिए उपयुक्त बाजार सुनिश्चित कर गुणों से भरपूर इस फल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बाबा केदार और भगवान बद्री विशाल से उत्तराखंड के लोगों के कल्याण और राज्य की समृद्धि की कामना करता हूँ।’

काफल खाने के लाभ
नैनीताल। काफल को अंग्रेजी में बॉक्स मिर्टल, संस्कृत में कट्फल, सोमवल्क, महावल्कल, कैटर्य, कुम्भिका, श्रीपर्णिका, कुमुदिका, भद्रवती, रामपत्रीय तथा हिंदी में कायफर व कायलफ भी कहा जाता है। यह पेट साफ करने के साथ ही कफ और वात को कम करने वाला तथा रुचिकारक होता है। इसके साथ ही यह शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है,

तथा सांस संबंधी समस्याओं, प्रमेह यानी डायबिटीज, अर्श या पाइल्स, कास, खाने में रुचि न होने, गले के रोग, कुष्ठ, कृमि, अपच, मोटापा, मूत्रदोष, तृष्णा, ज्वर, ग्रहणी पाण्डुरोग या एनीमिया, धातुविकार, मुखरोग या मुँह में छाले या सूजन, पीनस, प्रतिश्याय, सूजन तथा जलन में भी फायदेमंद होता है। इसकी तने की त्वचा सुगंधित, उत्तेजक, बलकारक, पूयरोधी, दर्दनिवारक, जीवाणुरोधी एवं विषाणुरोधी भी होती है।

(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें, यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से जुड़ें और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें।

यह भी पढ़ें : ग्लोबलवार्मिंग का प्रभाव ! तीन माह पूर्व ही “काफल पाको पूसा…!!!”

नवीन समाचार, नैनीताल, 9 जनवरी 2019। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा, ओ नरैंण काफल पाको चैता’ में वर्णित व चैत यानी चैत्र माह के आखिर में पकना शुरू करने वाला और वास्तव में मई-जून की गर्मियों में शीतलता प्रदान करने वाला काफल (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-Myrica esculenta) लगातार दूसरेे वर्ष संभवतया अपने इतिहास में पहली बार, कड़ाके की सर्दियों के पौष माह में ही पक गया है। नैनीताल जिले केे भकत्यूूड़ा गांव के एक पेड़ में काफल पक गए हैं उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी 8 जनवरी को ही काफल पकनेे की पहली खबर आई थी।

ऐसा शायद इसलिये कि मैदानों में छाए भीषण कोहरे व ठंड से इतर पहाड़ों पर दिन में चटख धूप खिली हुई है, और रात्रि में खुले आसमान से जबरदस्त मात्रा में बर्फ की तरह सूखा पाला टपक रहा है। मुनस्यारी, मुक्तेश्वर व बिन्सर को छोड़कर काफल के मुख्य उत्पादक स्थल कुमाऊं में कहीं भी बर्फवारी दूर, ठीक से शीतकालीन वर्षा भी नहीं हुई है।

इस कारण खेतों में रबी के अंतर्गत गेहूं व अन्य के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाए या अंकुरित होकर सूखने लगे हैं। जिला उद्यान अधिकारी भावना जोशी का कहना है कि वातावरण परिवर्तन के कारण फल आदि अपने समय से पहले आने लगे हैं। वर्तमान में कई फलों के फूल जो कि फरवरी में मार्च में दिखाई देते थे उनके फूल पेड़ों में दिखाई दे रहे हैं।

वहीं गत वर्ष 8 जनवरी को पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल ने बताया था कि जनपद के धारी ब्लॉक में टांडी पोखराड़ स्थित मझेड़ा वन पंचायत में 10 दिन पहले ही काफल पकने शुरू हो गए थे, और अब ठीक से पक गए हैं। उधर पहाड़पानी में भी काफल पके हुए नजर आ रहे हैं। इसे ‘ग्लोबलवार्मिंग’ का प्रभाव माना जा रहा है।

(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें, यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से जुड़ें और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें।

भैया, यह का फल है ? जी यह ‘काफल’ (Kafal) ही है .

डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। दिल्ली की गर्मी से बचकर नैनीताल आऐ सैलानी दिवाकर शर्मा सरोवरनगरी पहुंचे। बस से उतरते ही झील के किनारे बिकते एक नऐ से फल को देख बच्चे उसे लेने की जिद करने लगे। शर्मा जी ने पूछ लिया, भय्या यह का फल है ? टोकरी में फल लेकर बेच रहे विक्रेता प्रकाश ने जवाब दिया `काफल´ है। शर्मा जी की समझ में कुछ न आया, पुन: फल का नाम पूछा लेकिन फिर वही जवाब।

आखिर शर्मा जी के एक स्थानीय मित्र ने स्थिति स्पष्ट की, भाई साहब, इस फल का नाम ही काफल है। दाम पूछे तो जवाब मिला, 150 रुपऐ किलो। आखिर कागज की शंकु के अकार की पुड़िया दस रुपऐ में ली, लेकिन स्वाद लाजबाब था, सो एक से काम न चला। सब के लिए अलग-अलग ली। अधिक लेने की इच्छा भी जताई, तो दुकानदार बोला, बाबूजी यह पहाड़ का फल है। बस, चखने भर को ही उपलब्ध है।

पहाड़ में `काफल पाको मैंल न चाखो´`उतुकै पोथी पुरै पुरै´ जैसी कई कहानियां व प्रशिद्ध  कुमाउनी गीत ‘बेडू पाको बारों मासा’ भी (अगली पंक्ति ‘ओ नरैन काफल पाको चैता’) `काफल´ के इर्द गिर्द ही घूमते हैं। कहा जाता है कि आज भी पहाड़ के जंगलों में दो अलग अलग पक्षी गर्मियों के इस मौसम में इस तरह की ध्वनियां निकालते हैं।

एक कहानी के अनुसार यह पक्षी पूर्व जन्म में मां-बेटी थे, बेटी को मां ने काफलों के पहरे में लगाया था। धूप के कारण काफल सूख कर कम दिखने लगे, जिस पर मां ने बेटी पर काफलों को खाने का आरोप लगाया। चूंकि वह काफल का स्वाद भी नहीं ले पाई थी, इसलिऐ इस दु:ख में उसकी मृत्यु हो गई और वह अगले जन्म में पक्षी बन कर `काफल पाको मैंल न चाखो´ यानी काफल पक गऐ किन्तु मैं नहीं चख पायी की टोर लगाती रहती है।

उधर, शाम को काफल पुन: नम होकर पूर्व की ही मात्रा में दिखने लगे। पुत्री की मौत के लिए स्वयं को दोषी मानते हुऐ मां की भी मृत्यु हो गई और वह अगले जन्म में `उतुकै पोथी पुरै-पुरै´ यानी पुत्री काफल पूरे ही हैं की टोर लगाने वाली चिड़िया बन गई। आज भी पहाड़ी जंगलों में गर्मियों के मौसम में ऐसी टोर लगाने वाले दो पक्षियों की उदास सी आवाजें खूब सुनाई पड़ती हैं।

गर्मियों में होने वाले इस फल का यह नाम कैसे पड़ा, इसके पीछे भी सैलानी शर्मा जी व दुकानदार प्रकाश के बीच जैसा वार्तालाप ही आधार बताया जाता है। कहा जाता है कि किसी जमाने में एक अंग्रेज द्वारा इसका नाम इसी तरह `का फल है ?’ पूछने पर ही इसका यह नाम पड़ा।

पकने पर लाल एवं फिर काले से रंग वाली ‘जंगली बेरी’ सरीखे फल की प्रवृत्ति शीतलता प्रदान करने वाली है। कब्ज दूर करने या पेट साफ़ करने में तो यह अचूक माना ही जाता है, इसे हृदय सम्बंधी रोगों में भी लाभदायक बताया जाता है।

बीते वर्षों में काफल  ‘काफल पाको चैता’ के अनुसार चैत्र यानी मार्च-अप्रैल की बजाय दो माह पूर्व माघ यानी जनवरी-फरवरी माह में ही बाजार में आकर वनस्पति विज्ञानियों का भी चौंका रहा था, किन्तु इस वर्ष यह ठीक समय पर बाजार में आया था। गत दिनों 200 रुपऐ किग्रा तक बिकने के बाद इन दिनों यह कुछ सस्ता 150 रुपऐ तक में बिक रहा है।

लेकिन बाजार में इसकी आमद बेहद सीमित है, और दाम इससे कम होने के भी कोई संभावनायें नहीं हैं। केवल गिने-चुने कुछ स्थानीय लोग ही इसे बेच रहे हैं। इसलिए यदि आप भी इस रसीले फल का स्वाद लेना चाहें तो आपको जल्द पहाड़ आना होगा।

यह भी पढ़ें : अब (Kafal) ‘काफल पाको चैता’ नहीं कहना पड़ेगा ‘काफल पाको फागुन’

-करीब डेढ़ माह पहले ही पका काफल, वनस्पति विज्ञानी मौसमी परिवर्तन को कारण बता रहे
नवीन समाचार, नैनीताल, 05 मार्च 2021। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा, ओ नरैंण काफल पाको चैता’ में वर्णित चैत यानी चैत्र माह के आखिर में पकना शुरू करने वाला और वास्तव में मई-जून की गर्मियों में शीतलता प्रदान करने वाला काफल (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-डलतपबं मेबनसमदजं) इस बार फागुन यानी करीब डेढ़ माह पूर्व ही पक गया है।

हालांकि इससे वर्ष 2018 व 2019 में काफल लगातार दो वर्ष संभवतया अपने इतिहास में पहली बार, कड़ाके की सर्दियों के पौष यानी जनवरी माह के शुरू में ही पककर भी चौंका चुका है। इसका कारण वैश्विक चिंता का कारण बने ग्लोबलवार्मिंग के साथ ही स्थानीय तौर पर इस वर्ष शीतकालीन वर्षा का न होना माना जा रहा है।

हमेशा की तरह तल्लीताल में राजेंद्र पाल सिंह ने रातीघाट के जंगलों से लाकर काफल के फलों को बेचना प्रारंभ कर दिया है। अभी इसकी कीमत रिकॉर्ड 500 रुपए प्रति किलो तक बताई जा रही है, जबकि पूर्व के वर्षों में काफल 200-250 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 व 2019 में 8 जनवरी को सबसे पहले काफल पकनेे की पहली खबर आई थी।

गौरतलब है कि इस वर्ष पहाड़ों पर ठीक से बर्फवारी तो दूर, शीतकालीन वर्षा भी नहीं हुई है। इस कारण खेतों में रबी के अंतर्गत गेहूं व अन्य के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाए या अंकुरित होकर सूखने लगे हैं। इस वर्ष राज्य वृक्ष बुरांश भी पिछले वर्षों की तरह जमकर नहीं फूला है। बसंत पंचमी से खिलने वाले प्योंली एवं पद्म प्रजाति के आड़ू, खुमानी, पुलम व आलूबुखारा आदि के पेड़ों में भी फूलों की बहार नजर नहीं आ रही है।

इस बारे में कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा. ललित तिवारी ने कहा कि दीर्घकालीन अध्ययन न होने के कारण इसे ग्लोबलवार्मिंग तो नहीं कह सकते, अलबत्ता, तकनीकी तौर पर मौसमी परिवर्तन के कारण, इस वर्ष शीतकालीन वर्षा व बर्फबारी तथा ओस न पड़ने के कारण समय से पहले ताममान में वृद्धि होने की वजह से फूल व फल अधिक जल्दी खिलने-पकने लगे हैं। बुरांश भी मार्च की जगह फूलदेई से काफी पहले ही खिल गया है। इसी तरह अगेती काफल भी पकने लगा है।

(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें, यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से जुड़ें और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें।

Leave a Reply

आप यह भी पढ़ना चाहेंगे :

 - 
English
 - 
en
Gujarati
 - 
gu
Kannada
 - 
kn
Marathi
 - 
mr
Nepali
 - 
ne
Punjabi
 - 
pa
Sindhi
 - 
sd
Tamil
 - 
ta
Telugu
 - 
te
Urdu
 - 
ur

माफ़ कीजियेगा, आप यहाँ से कुछ भी कॉपी नहीं कर सकते

नये वर्ष के स्वागत के लिये सर्वश्रेष्ठ हैं यह 13 डेस्टिनेशन आपके सबसे करीब, सबसे अच्छे, सबसे खूबसूरत एवं सबसे रोमांटिक 10 हनीमून डेस्टिनेशन सर्दियों के इस मौसम में जरूर जायें इन 10 स्थानों की सैर पर… इस मौसम में घूमने निकलने की सोच रहे हों तो यहां जाएं, यहां बरसात भी होती है लाजवाब नैनीताल में सिर्फ नैनी ताल नहीं, इतनी झीलें हैं, 8वीं, 9वीं, 10वीं आपने शायद ही देखी हो… नैनीताल आयें तो जरूर देखें उत्तराखंड की एक बेटी बनेंगी सुपरस्टार की दुल्हन उत्तराखंड के आज 9 जून 2023 के ‘नवीन समाचार’ बाबा नीब करौरी के बारे में यह जान लें, निश्चित ही बरसेगी कृपा नैनीताल के चुनिंदा होटल्स, जहां आप जरूर ठहरना चाहेंगे… नैनीताल आयें तो इन 10 स्वादों को लेना न भूलें बालासोर का दु:खद ट्रेन हादसा तस्वीरों में नैनीताल आयें तो क्या जरूर खरीदें.. उत्तराखंड की बेटी उर्वशी रौतेला ने मुंबई में खरीदा 190 करोड़ का लक्जरी बंगला नैनीताल : दिल के सबसे करीब, सचमुच धरती पर प्रकृति का स्वर्ग