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March 19, 2024

Enemy Property : उत्तराखंड में अब अरबों की शत्रु संपत्तियों पर कब्जे की तैयारी में सरकार, केंद्र के बाद राज्य सरकार भी गंभीर

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Enemy Property

Uttarakhand cabinet reshuffle Karmchari

नवीन समाचार, देहरादून, 26 अगस्त 2023 (Enemy Property)। देहरादून में मौजूद शत्रु संपत्तियों पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। उन्होंने डीएम सोनिका को जिले की सभी शत्रु संपत्तियों को कब्जा मुक्त कराकर उन्हें सरकारी जमीन घोषित करने के निर्देश दिए हैं। बताया गया है कि इन शत्रु संपत्तियों की वर्तमान कीमत अरबों रुपये की हैं। उधर नैनीताल जिला मुख्यालय की कम से कम से तीन सहित जिले की कई शत्रु संपत्तियों को लेकर भी जिला प्रशासन सक्रिय बना हुआ है।

अलबत्ता जिला प्रशासन के सामने सबसे बड़ी मुश्किल काबुल के कुछ बड़े जमींदारों की जमीन को लेकर है। बताया गया है कि काबुल के ये जमींदार दून में दिलाराम, सर्वे चौक, कमिश्नरी कार्यालय, ईसी रोड, आईएसबीटी के पास, राजपुर रोड, मसूरी, माजरा, चकराता में आकर बस गए थे, लेकिन बंटवारे के बाद अपनी हजारों बीघा जमीन को छोड़कर पाकिस्तान चले गए। अब कुछ लोग खुद को जमींदारों का रिश्तेदार बताकर इन जमीनों पर अपना दावा ठोक रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार का कहना है कि यह सभी जमीनें शत्रु संपत्ति हैं। लेकिन, जिला प्रशासन इन पर कब्जा नहीं ले पा रहा है।

यह भी बताया गया है कि इन जमीनों पर लोगों ने अवैध कब्जे किए हुए हैं। फर्जी रजिस्ट्री और स्टांप घोटालों की जांच में जुटे प्रशासन को ऐसी जमीनों को हेराफेरी कर सरकारी दस्तावेजों में चढ़ाने की जानकारी मिली है। ऐसे में इसकी जांच की जा रही है। इससे पहले भी एक तहसीलदार की भूमिका संदिग्ध मिलने पर कमिश्नर के आदेश पर शत्रु संपत्तियों को नगर निगम के दस्तावेजों में चढ़ने से रोक लिया गया था।

इधर बताया गया है कि उत्तराखंड में शत्रु संपत्ति को लेकर केंद्र सरकार भी गंभीर है। गृह मंत्रालय ने भी शत्रु संपत्तियों पर कब्जा लेने के आदेश दे रखे हैं और मंत्रालय लगातार इसकी निगारानी भी कर रहा है। अब सीएम पुष्कर सिंह धामी ने शत्रु संपत्ति मामले में सख्त रुख अपनाकर डीएम सोनिका को इन संपत्तियों को अपने कब्जे में लेकर उनकी चारदीवारी कराने के निर्देश दिए हैं। सीएम ने इन जगहों पर बोर्ड लगाकर इनका जनहित में प्रयोग करने के लिए कहा है।

मामले में डीएम सोनिका ने बताया कि शत्रु संपत्तियों को लेकर जिला प्रशासन लगातार काम कर रहा है, चिह्नित जमीनों पर कब्जे लिए जा रहे हैं, कई मामले एडीएम प्रशासन के कोर्ट में लंबित हैं, उन पर सुनवाई चल रही है, जल्द फैसला आते ही ऐसी जमीनों पर कब्जा लिया जाएगा, शेष जमीनों पर कब्जे की प्रक्रिया चल रही है।

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-शत्रु संपत्तियों का कुल मूल्य एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा, इन संपत्तियों और 3000 करोड़ रुपए मूल्य की शत्रु हिस्सेदारी को बेचने का प्रयास कर रही है केंद्र सरकार
नवीन समाचार,  नई दिल्ली , 12 मार्च 2019। केंद्र सरकार ने बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए या फिर 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई कुछ शत्रु संपत्तियों के सार्वजनिक इस्तेमाल की इजाजत राज्य सरकारों को दे दी है। यह कदम केंद्र सरकार के उन प्रयासों के बीच आया है जिसके तहत वह एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा मूल्य की 9,400 शत्रु संपत्तियों और 3000 करोड़ रुपए मूल्य की शत्रु हिस्सेदारी को बेचने का प्रयास कर रही है।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना के मुताबिक शत्रु संपत्ति आदेश, 2018 के निस्तारण के लिये दिशानिर्देशों में संशोधन किया गया है जिससे राज्य सरकार द्वारा शत्रु संपत्ति का इस्तेमाल खास तौर पर सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए किया जा सके। शत्रु संपत्तियां वो संपत्तियां हैं जो उन लोगों द्वारा पीछे छोड़ी गईं जिन्होंने पाकिस्तान और चीन की नागरिकता ले ली। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तानी नागरिकों की ऐसी 9,280 संपत्तियां हैं जबकि चीनी नागरिकों द्वारा 126 संपत्तियां यहां छोड़ी गई हैं।

पाकिस्तानी नागरिकता लेने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों में से 4,991 उत्तर प्रदेश में स्थित हैं जो देश में सबसे ज्यादा हैं। पश्चिम बंगाल में ऐसी 2,735 संपत्तियां हैं जबकि दिल्ली में 487 संपत्तियां हैं। चीनी नागरिकों द्वारा छोड़ी गई सबसे ज्यादा संपत्तियां मेघालय में हैं जहां ऐसी 57 संपत्तियां हैं। पश्चिम बंगाल में ऐसी 29 और असम में सात संपत्तियां हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने पिछले साल राज्यसभा को बताया था कि शत्रु संपत्तियों का अनुमानित मूल्य लगभग एक लाख करोड़ रुपए है।

यह भी पढ़िए : ‘जिन्ना’ के प्यारे ‘राजा अमीर’ अब न ‘राजा’ रहे न ‘अमीर’

Rashtriya Sahara 13 January 2016 Page-1
राष्ट्रीय सहारा, 13 जनवरी 2016, पेज-1
  • करीब 50 हजार करोड़ की सपंत्ति के मालिक थे राजा अमीर मोहम्मद खान
  • 14 मार्च 2017  को संसद में ध्वनिमत से पारित हुआ 49 वर्ष पुराने शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन संबंधी विधेयक
  • नैनीताल में करोड़ों का होटल, यूपी व उत्तराखंड में हैं खरबों रुपये की संपत्तियां

डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। करीब 50 हजार करोड़ यानी करीब पांच खरब रुपये की शत्रु संपत्ति के मालिक ‘राजा महमूदाबाद’ यानी राजा अमीर मोहम्मद खान एक पल में ‘‘रंक’ जैसी स्थिति में पहुंच गये हैं। ऐसा संसद में पास हुए विधेयक के बाद हुआ है। केंद्र सरकार की ओर से 49 साल पुराने 1968 में बने सरकारी स्थान (अप्राधित अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम 1971 कानून में संशोधन संबंधी विधेयक को मंगलवार को ध्वनिमत से पारित किया गया।

इस संशोधन विधेयक के लागू हो जाने से बंटवारे के समय पाकिस्तान चले गए अथवा 1965 और 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान की नागरिकता ले चुके लोग भारत में अपनी संपत्तियों (जिन्हें शत्रु संपत्ति) कहा जाता है, का हस्तांतरण नहीं कर सकेंगे।नए विधेयक से राजा महमूदाबाद को सर्वाधिक मुश्किलें होनी तय हैं, जिनकी नैनीताल में करोड़ों के 1870 में निर्मित बताये जाने वाले मेट्रोपोल होटल व अन्य भूसंपत्ति सहित करीब 50 हजार करोड़ रुपये की सहित उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में 10 सितम्बर 1965 में शत्रु संपत्ति घोषित देश की कुल 1519 में से करीब 936 संपत्तियां हैं।

ताजा विधेयक के अनुसार उनकी संपत्तियां संबंधित जिले के डीएम के अधिकार में चली जाएंगी। विधेयक की एक धारा के अनुसार इन शत्रु संपत्तियों पर काबिज लोगों को मालिकाना हक मिलने की बात भी कही जा रही है। इसलिए काबिज लोगों के लिए राहत भरी खबर हो सकती है। अलबत्ता केंद्र सरकार के इस विधेयक के बावजूद यह मामला आगे भी विवादों में रह सकता है, क्योंकि आगे राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर होने और विधेयक के कानून बनने के बावजूद संबंधित पक्षों को सर्वोच्च न्यायालय जाने का समय दिया जा रहा है, तथा सर्वोच्च न्यायालय में पहले से भी कई वाद लंबित हैं।

Enemy Property : जिन्ना के मित्र थे पूर्व राजा महमूदाबाद और प्यारे थे अमीर, मुहम्मद बिन तुगलक ने जागीर में दी थी संपत्ति

नैनीताल। बताया जाता है कि आजादी से पूर्व अवध रियासत के सबसे बड़े जमींदार राजा महमूदाबाद मोहम्मद अमीर अहमद खान पाकिस्तान के संस्थापक ‘कायदे आजम’ मोहम्मद अली जिन्ना के बेहद करीबी मित्र और मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य थे। उन्हें अंग्रेजों ने भी ‘‘सर’ की उपाधि से नवाजा था। उन्हें बगदाद के खलीफा के मुख्य काजी, काजी नसरुल्लाह का वंशज माना जाता है, जो साल 1316 में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान शादिह-उद-दिन ओमर खिलजी के दरबार में बतौर राजदूत भारत आये थे।

बाद में वह मुहम्मद तुगलक की सेना में कमांडर की तरह लड़े। जिसके एवज में उन्हें अवामें इनाम के तौर पर महमूदाबाद रियासत कही जाने वाली बड़ी जागीर दी गयी। 1957 में राजा मोहम्मद अमीर अहमद खान पाकिस्तान चले गये थे, ऐसे में सरकार ने उनकी करीब 20 हजार करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति को ‘‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर कब्जे में ले लिया। 1973 लंदन में उनके निधन के बाद अपनी मां रानी कनीज आबिद के साथ भारत में ही रहे उनके पुत्र मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान ने अपनी संपत्ति को वापस लेने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।

16 जुलाई 1984 को उन्होंने सिविल जज लखनऊ के न्यायालय में उत्तराधिकार का एक मुकदमा दायर किया। न्यायालय ने 8 जुलाई, 1986 को राजा महमूदाबाद को कुछ संपत्तियों का उत्तराधिकारी घोषित किया।इसी बीच राजा ने मुंबई में भी अपनी संपत्तियों पर कब्जा पाने के लिए याचिका दायर की, जिस पर मुंबई हाईकोर्ट ने 2002 में राजा के पक्ष में निर्णय दिया। इसी बीच यूपी के संबंध में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में राजा के पक्ष में फैसला दिया कि राजा की जो संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित की गई है, उसे राजा मोहम्मद अमीर खान को सौंप दी जाए।

इसके बाद राजा ने सभी संपत्तियों पर 2005 तक कब्जा ले लिया। इस पर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की और केंद्र सरकार ने 2010 में शत्रु संपत्ति पर कब्जा बरकरार रखने के लिए एक अध्यादेश जारी कर दिया, जिससे मामला फिर उलझ गया। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अध्यादेश को कानून में परिवर्तितत करने के लिए शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं पुनपरुष्टिकरण) विधेयक 2010 को संसद से पारित कराने का फैसला किया।

इससे शत्रु संपत्ति पर सरकारी कब्जा बरकरार रहता। मुस्लिम सांसदों तथा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव व भाजपा आदि के विरोध के कारण विधेयक पारित नहीं हो सका था। इधर पिछले वर्ष जनवरी 2016 में केंद्र की एनडीए सरकार ने इस बाबत अध्यादेश भी जारी किया था, जिस पर अब विधेयक भी पारित हो गया था।

Enemy Property : राजा अमीर मोहम्मद की संपत्तियां

वर्तमान में राजा महमूदाबाद के वारिस राजा अमीर मोहम्मद खान के कब्जे में नैनीताल के करीब 10 हजार करोड़ रुपये मूल्य के मेट्रोपोल होटल व इससे लगी संपत्तियों के अलावा यूपी के लखनऊ में हलवासिया मार्केट, बटलर पैलेस, कपूर होटल, जहांगीराबाद मेंशन, इमामबाड़े के पीछे का हिस्सा, जामा मस्जिद के पास का इलाका सहित सीतापुर, बाराबंकी व लखीमपुर के अलावा दिल्ली में हजारों करोड़ की संपत्तियां हैं।

नैनीताल में 5.72 एकड़ में बना 40 कमरों का मेट्रोपोल होटल, 12 व 26 कमरों के अन्य आवास, छह सुइट तथा चार व सात कमरों के नवीनीकृत आवास तथा नाले से लगी भूमि पर 116 आवासीय भूमि सहित कुल 8.72 एकड़ भूमि है। इस संपत्ति को पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 30 दिसम्बर 2010 को कब्जेदारों से मुक्त कराकर राजा को सौंप दिया गया था तथा पांच अगस्त 2010 को शत्रु संपत्ति संबंधी कानून में हुए संशोधनों के बाद जिला प्रशासन ने अपने नियंतण्रमें ले लिया था।

नैनीताल के सनी बैंक में भी है एक और शत्रु संपत्ति (Enemy Property)

नैनीताल। मेट्रोपोल होटल के अलावा नैनीताल में राजभवन रोड पर अम्तुल्स पब्लिक स्कूल के पास सनी बैंक कहे जाने वाले क्षेत्र में एक और शत्रु संपत्ति है। काशना अहमद की यह संपत्ति करीब 716.81 वर्ग मीटर भूमि की है। इस पर कुछ लोग किराये पर काबिज हैं।

पाकिस्तानी नागरिकों की 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 12,000 एकड़ संपत्ति जब्त करेगा भारत

जी हाँ, भारत पाकिस्तानी नागरिकों की 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 12,000 एकड़ संपत्ति जब्त करने जा रहा है। बीते सप्ताह ही भारतीय संसद में 49 साल पुराने शत्रु संपत्ति अधिनियम में बदलाव किया गया है। इसके तहत देश विभाजन के दौरान पाकिस्तान और चीन जाने वाले लोगों के उत्तराधिकारियों का इन संपत्तियों से दावा खत्म हो जाएगा। सरकार इन संपत्तियों को अपने कब्जे में लेकर बेचने की तैयारी में है।

क्या है शत्रु संपत्ति?
1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत सरकार ने इन देशों के नागरिकों की संपत्तियों को सीज कर दिया था। इन संपत्तियों को शत्रु संपत्ति करार दिया गया है। इन संपत्तियों में भूमि, मकान, फर्म, शेयर, बैंक बैलेंस, प्रविडेंट समेत कई अन्य चीजें शामिल हैं। फिलहाल इन संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी कस्टोडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया के पास है। युद्ध के दौर में चीन और पाक छोड़ने वाले भारतीयों की संपत्ति की सुरक्षा करने में असफल रहने के बाद भारत सरकार ने यह कदम उठाया था।

क्या है इन अचल संपत्तियों की कीमत?
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में दी गई जानकारी में गृह मंत्रालय ने देश में 9,280 अचल शत्रु संपत्तियों की जानकारी दी थी। ये सभी संपत्तियां पाकिस्तानी नागरिकों से संबंधित हैं। यह कुल संपत्ति 12,000 एकड़ में फैली है और इनकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की है।

ऐसी संपत्तियों पर है अंतरराष्ट्रीय अग्रीमेंट?
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के बाद ताशकंद समझौते में इस बात पर सहमति बनी थी कि दोनों देश विवाद के दौरान जब्त की संपत्तियों और एसेट्स को वापस लौटाएंगे। हालांकि पाकिस्तान सरकार ने इस समझौते पर अमल न करते हुए 1971 में भारतीयों नागरिकों और कंपनियों से संबंधित संपत्तियों को बेच दिया। दूसरी तरफ भारत में यह संपत्तियां अब भी कस्टोडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी के नियंत्रण में ही हैं।

UP और बंगाल में हैं ऐसी सबसे ज्यादा संपत्तियां
उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में ऐसी 80 फीसदी संपत्तियां हैं। इनमें से तकरीबन 98 फीसदी पाकिस्तान नागरिकों से संबंधित हैं।  उत्तराखंड के नैनीताल में भी ऐसी शत्रु संपत्तियां हैं।

क्या ऐसा कानून देश में पहली बार लागू हुआ है?
ऐसा नहीं है। इससे पहले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने 1939 में डिफेंस ऑफ इंडिया ऐक्ट लागू किया था। इसके तहत जर्मनी, जापान और इटली के नागरिकों की संपत्ति को एनमी प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि इन देशों के नागरिक भारत से कोई वित्तीय लाभ न ले सकें। देश की आजादी के बाद यह ऐक्ट समाप्त हो गया था।

नैनीताल का करोड़ों का मेट्रोपोल होटल भी होगा जब्त

नवीन जोशी, नैनीताल, 4 अप्रैल 2018। बीते सप्ताह भारतीय संसद में 49 साल पुराने सरकारी स्थान (अप्राधित अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम 1971 कानून में संशोधन संबंधी विधेयक में बदलाव के जरिये पाकिस्तानी व चीनी नागरिकों की भारत में मौजूद ‘शत्रु संपत्तियों’ को सरकार द्वारा जब्त करने के निर्णय का प्रभाव उत्तराखंड के नैनीताल में भी दिखाई देना तय है। बताया गया है कि केंद्र सरकार करीब 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 12,000 एकड़ शत्रु संपत्ति जब्त करने जा रही है।

उल्लेखनीय है कि यह संपत्तियां वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त ‘कस्टोडियन’ की केवल ‘कस्टडी’ में हैं। यानी इनके उपयोग आदि का अधिकार कस्टोडियन को भी नहीं है। सरकार द्वारा जब्त कर लिये जाने के बाद यह संपत्तियां पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में आ जाएंगी। इसके बाद देश विभाजन के दौरान पाकिस्तान और चीन जाने वाले लोगों के उत्तराधिकारियों का इन संपत्तियों से दावा खत्म हो जाएगा। बताया गया है कि सरकार इन संपत्तियों को अपने कब्जे में लेकर बेचने की तैयारी में भी है, अलबत्ता मुख्यालय में अभी इस तरह के आदेश नहीं पहुंचे हैं।

अब क्या होगा संपत्तियों का

ताजा विधेयक के अनुसार उनकी संपत्ति संबंधित जिले के डीएम के अधिकार में चली जायेंगी। अध्यादेश की एक धारा के अनुसार इन शत्रु संपत्तियों पर काबिज लोगों को भी मालिकाना हक मिल सकता है। अलबत्ता, केंद्र सरकार के इस अध्यादेश के बावजूद यह मामला आगे भी विवादों में रह सकता है, क्योंकि इस बाबत अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में वाद लंबित है तथा इस अध्यादेश के कानून बनने की राह में वर्ष 2010 की तरह अभी भी मुस्लिम सांसद एवं कई दल इस पर विरोध में आ सकते हैं और मामले में राजनीति गरमा सकते हैं।

यह भी पढ़ें Enemy Property : नैनीताल से जुड़ी हैं पाकिस्तान के नये राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की जड़ें

  • नैनीताल के मौजूदा गुरदीप होटल के पास था अल्वी के दादा का दांतों का क्लीनिक
  • अल्वी के पिता रहे जवाहर लाल नेहरू के निजी पारिवारिक दंत चिकित्सक

नवीन जोशी, नैनीताल। पाकिस्तान के 13वें राष्ट्रपति के पद हेतु निर्वाचितहालिया सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के नेता डॉ. आरिफ अल्वी का नैनीताल से पुस्तैनी संबंध रहा है। नगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक राजीव लोचन साह ने बताया कि श्री अल्वी के दादा डा. हफीज मोहम्मद इलाही अल्वी श्री साह के नाना गोविंद लाल साह सलमगढ़िया के अच्छे मित्र थे। साह बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपनी नानी से डा. अल्वी का जिक्र सुना था।

नर्सरी स्कूल वाले नाले के बगल से आज के सूचना कार्यालय (तत्कालीन गोविन्द हॉल) तक की जमीन डा. अल्वी की ही सम्पत्ति थी। यहीं मौजूदा गुरदीप होटल के स्थान पर डॉ. इलाही का दांतों का क्लीनिक था। वे श्री साह के नाना के किरायेदार थे अथवा उन्होंने यह सम्पत्ति खरीद ली थी। इस बारे में ठीक से जानकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय गोविंद लाल साह नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनके निकटवर्ती ताकुला स्थित आवास में गांधी जी भी दो बार अतिथि के रूप में रहे थे।

उल्लेखनीय है कि पेशे से दंत चिकित्सक 69 वर्षीय आरिफ अल्वी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। वह 2006 से 2013 तक पार्टी के महासचिव भी रहे हैं। इधर पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के प्रमुख इमरान खान के देश के 22वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण करने के ठीक बाद पार्टी प्रवक्ता फवाद चौधरी ने 18 अगस्त को ट्वीट किया कि डा. आरिफ अल्वी पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया।

वह गत 25 जुलाई को हुए चुनाव में एनए 247 (कराची) सीट से नेशनल असेंबली के लिए निर्वाचित हुए हैं, जबकि 2013 में नेशनल असेंबली के लिए हुए आम चुनाव में भी निर्वाचित हुए थे। उन्हें पाकिस्तान का 13वां राष्ट्रपति चुन लिया गया है। डॉक्टर आरिफ़ ने पीएमएल-एन समर्थित उम्मीदवार मुत्ताहिद मजलिस-ए-अमाल (एमएमए) के प्रमुख फ़ज़लुर्रहमान और पीपीपी के सीनियर नेता ऐताज़ एहसान को हरा कर यह चुनाव जीता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्वीट कर डॉक्टर आरिफ़ रहमान अल्वी को बधाई दी है।

पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने बुधवार 5 सितम्बर को तीनों उम्मीदवारों या उनके एजेंट को सचिवालय बुलाया है। उनके सामने ही चुनावी नतीजे आधिकारिक रूप से घोषित किए जाएंगे। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली और सीनेट में कुल 420 वोट पड़े, जिनमें से अल्वी को 212 वोट मिले. जेयूआई-एफ़ के फ़ज़लुर्रहमान को 131 वोट और पीपीपी के ऐताज़ एहसान को 81 वोट मिले।

अल्वी के नैनीताल से पुस्तैनी रिश्ते की पुष्टि अल्वी की संस्था ‘अल्वी डेंटल’ की वेबसाइट से भी होगी है। अल्वी डेंटल के पाकिस्तान के कराची में दो दांतों के अस्पताल हैं, और इनमें से एक को पाकिस्तान के सबसे बड़े दांतों के अस्पताल का दर्जा भी हासिल है। अल्वी पाकिस्तान डेंटल एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। अल्वी डेंटल की वेबसाइट के अनुसार अल्वी के दादा मरहूम डा. हफीज मोहम्मद इलाही अल्वी को भारत में आधुनिक दंत चिकित्सा का अगुवा माना जाता है।

उन्होंने वर्ष 1880 में नैनीताल में अल्वी डेंटल क्लीनिक की स्थापना की थी। इससे पहले उन्होंने नैनीताल में ही दंत चिकित्सा का प्रशिक्षण लिया था। इसके लिए उस जमाने में हफीज ने 5000 रुपए फीस भी दी थी। अपना क्लीनिक खोलने से पहले वे कई साल तक एक अंग्रेज डेंटिस्ट के सहायक रहे थे। वहीं आरिफ अल्वी के पिता डा. हबीब उर रहमान इलाही अल्वी ने अपने पिता के इस पेशे को आगे बढ़ाने के लिए लखनऊ में क्लीनिक खोला था।

जहां उनके मरीजों में खिलाफत आंदोलन के जनक और दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के संस्थापक मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना शौकत अली और बाद में भारतके प्रधानमंत्री बने जवाहर लाल नेहरू सहित अविभाजित भारत की बहुत सारी रियासतों के राजकुमार और अन्य कई नेता शामिल थे। 1947 में बंटवारे के बाद कराची के सदर बाजार में क्लीनिक खोल लेने के बाद भी जवाहर लाल नेहरू के साथ उनका पत्र व्यवहार होता था। इनमें से बहुत सारे पत्र अब भी अल्वी परिवार के पास सुरक्षित हैं।

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने 16 अगस्त को घोषणा की है कि राष्ट्रपति चुनाव चार सितम्बर यानि राष्ट्रपति ममनून हुसैन का राष्ट्रपति के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने से पांच दिन पहले हांेगे। राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार 27 अगस्त तक नामांकन दाखिल कर सकते हैं और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची 30 अगस्त को जारी की जाएगी।

Enemy Property : जिन्ना की एएमयू में चल रही ‘हेट स्टोरी’ से इतर नैनीताल में उनकी ‘लव स्टोरी’ को हो रहे 100 वर्ष पूरे

-पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ ही पहले राष्ट्रपति मोहम्मद अली जिन्ना की प्रेम कहानी का भी है कुमाऊँ-उत्तराखंड से सम्बन्ध 

नवीन जोशी, नैनीताल। पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ ही पहले राष्ट्रपति मोहम्मद अली जिन्ना की प्रेम कहानी का भी कुमाऊँ-उत्तराखंड से सम्बन्ध है। खान की पत्नी आइरिन पन्त अल्मोड़ा की थीं, तो जिन्ना का प्रेम नैनीताल में परवान चढ़ा था।

इधर एएमयू यानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर छिड़ी जंग के बीच सरोवरनगरी नैनीताल इस वर्ष उनकी ‘लव स्टोरी’ के शताब्दी वर्ष की गवाह बन रही है। ठीक सौ वर्ष पहले 19 अप्रैल 1918 को विवाह के तुरंत बाद जिन्ना अपनी पत्नी रतनबाई (रत्ती) के साथ हनीमून मनाने सरोवर नगरी में आए थे, और यहां सप्ताह भर रुके थे। इस दौरान जिन्ना दंपत्ति ने यहां नैनी झील में नौकायन और घोड़े की सवारी की थी।

मशहूर इतिहास लेखक वीरेंद्र कुमार बर्नवाल की पुस्तक ‘जिन्ना एक पुर्नदृष्टि’ के अनुसार जिन्ना दूसरे धर्म की युवती रत्ती से विवाह कर सुहागरात मनाने अपने मित्र राजा महमूदाबाद सर मोहम्मद अमीर अहमद खान के नैनीताल स्थित बंगले में रुके थे। जिन्ना के विवाह के समाचार पर सरोजनी नायडू ने लिखा था, ‘इस तरह अंततः जिन्ना ने अपनी कामना का नील कुसुम प्राप्त ही कर लिया..‘ उन्होंने आगे और जोड़ा था, ‘इस बच्ची (रत्ती) ने उससे कहीं अधिक बलिदान किया है, जितना कि वह आज समझ रही है।’ जिन्ना की जीवनकथा ‘जिन्ना ऑफ पाकिस्तान’ में लेखक स्टेनली वॉलपर्ट ने भी उल्लेख किया है कि वे हनीमून के लिए नैनीताल आए थे। अभी तक एक दूसरे से अलग रहे जिन्ना व रत्ती की प्रेम कहानी नैनीताल में ही परवान चढ़ी थी।

Enemy Property : हनीमून मनाये होटल मेट्रोपोल जैसा ही हुआ जिन्ना की प्रेम कहानी का अंत

नैनीताल। हालांकि पुस्तक ‘जिन्ना एक पुर्नदृष्टि’ के अनुसार जिन्ना राजा महमूदाबाद के बंगले में रुके थे, जबकि कई इतिहासकारों के अनुसार जिन्ना राजा महमूदाबाद के नैनीताल में 1880 में बने आलीशान मेट्रोपोल होटल में 7 से 10 दिन रुके थे। यह होटल देश के बंटवारे के बाद राजा के पाकिस्तान चले जाने के कारण शत्रु संपत्ति घोषित हो गया। वर्तमान में इसके आलीशान भवन खंडहर हो चुके हैं। इस होटल से शुरू जिन्ना की प्रेमकथा का अंजाम भी इस होटल जैसा ही हुआ। 1916 में 40 वर्षीय जिन्ना मुंबई के प्रतिष्ठित वकील थे।

अपनी पहली पत्नी के निधन के कुछ ही समय बाद उन्हें मुंबई (तब बॉम्बे) के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शुमार अपने पारसी दोस्त दिनशॉ मानेकजी पेटिट की स्वयं से 24 वर्ष छोटी, अपने अद्वितीय सौंदर्य और बुद्धिमत्ता के चलते ‘नाइटिंगेल ऑफ मुंबई’ नाम से मशहूर मात्र 16 वर्षीया पुत्री रतनबाई उर्फ रत्ती से प्रेम हो गया। उनकी अपनी पहली शादी भी 16 वर्ष की उम्र में हो चुकी थी। जिन्ना और रत्ती के विवाह के लिए रत्ती पिता राजी नहीं थे, सो रत्ती के घर से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन 18 वर्ष की होते ही उन्होंने रत्ती को इस्लाम धर्म में शामिल कर और मरयम नाम रखकर विवाह कर लिया था।

पुस्तक के अनुसार ‘जिन्ना की मुस्लिम समाज में राष्ट्रीय छवि, राजनीतिक प्रतिष्ठा और राजनीतिक उपलब्धियों के कारण उनके अंतर्धामिक विवाह से ईर्ष्या करने वाले बहुत थे। रत्ती यदि धर्म परिवर्तन न करती तो जिन्ना को अपने धर्म के विवाह प्राविधानों के अनुसार आवश्यक रूप से यह घोषणा करनी होती कि वे उस धर्म के अनुयायी नहीं हैं। इस घोषणा का अर्थ होता कि वह स्वयं को मुसलमान नहीं मानते और ऐसा करना उनके लिए स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता।’

इसीलिए पुस्तक के अनुसार निकाह की रस्म में जिन्ना का प्रतिनिधित्व नैनीताल वाले उनके मित्र राजा महमूदाबाद ने और रत्ती का प्रतिनिधित्व रजब अली भाई इब्राहीम पाटलीवाला ने किया था। लेकिन यही जिन्ना थे कि विवाह के एक वर्ष बाद ही 1919 में अपनी पुत्री दीना के जन्म के बाद वे स्वाधीनता आंदोलन व खासकर मुस्लिम लीग के बैनर तले अलग राष्ट्र बनाने के आंदोलन में इस कदर उलझे कि उनका रत्ती से साथ छूटता चला गया, और 1927 में वे अलग ही हो गए। रत्ती उन्हें अंत तक मार्मिक प्रेमपत्र लिखती रहीं, लेकिन वे वापस नहीं लौटे, और उनके विरह में मात्र 29 वर्ष की आयु में ठीक अपने जन्मदिन के रोज रत्ती का निधन हो गया था।

जो सीखा, उस पर अमल नहीं किया
नैनीताल। जिन्ना के जीवन में कई ऐसे वाकये आते हैं, जहां वे अपनी सीखी हुई सीखों पर खुद ही अमल नहीं करते दिखाई देते हैं। जिन्ना मूलतः भारत की आजादी के लिए एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे, किंतु आगे धार्मिक आधार पर देश को भारत और पाकिस्तान में तोड़ने का दोषी भी उन्हें ही बताया जाता है। उन्होंने स्वयं दूसरे धर्म की युवती से विवाह किया, किंतु जब उनकी स्वयं की पुत्री दीना को एक पारसी युवक नेविल वाडिया से प्रेम हो गया।

और उसने जिन्ना की मर्जी के बगैर नेविल से विवाह कर लिया, तो रत्ती के पिता की तर्ज पर अब जिन्ना ने अपनी बेटी से न केवल रिश्ता तोड़ लिया, यहां तक कि उसे जिन्ना नाम भी प्रयोग नहीं करने दिया। शायद इसीलिए पिता के द्वारा पाकिस्तान का निर्माण करने के बावजदू उनकी पुत्री ने भारत को अपनाया और जिन्ना की पाकिस्तान में कोई विरासत तक नहीं बची। इसी तरह बताया जाता है कि वे नैनीताल में एक साथ मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च को देखकर प्रभावित हुए थे और उन्होंने शहर के धार्मिक सौहार्द और एकता की तारीफ भी की थी। लेकिन बाद में उन पर ही देश के धार्मिक सौहार्द को तोड़ने के आरोप भी लगे।

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