March 28, 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमनाम व आदर्श ‘नरेंद्र’ की उत्तराखंड से स्वामी और राजर्षि विवेकानंद बनने की कहानी

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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 12 जनवरी 2022। देश के विचारवान युवाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी आदि अनेकानेक लोगों के आदर्श स्वामी विवेकानंद ने आज के ही दिन यानी 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में आयोजित धर्म संसद में अपने संबोधन- ‘मेरे अमेरिका वासी भाइयोे और बहनो….’ से शुरू कर विश्व को चमत्कृत कर दिया था।

काकड़ीघाट : जहाँ स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ

स्वामी विवेकानंद का नैनीताल-कुमाऊं-उत्तराखंड से गहरा संबंध रहा है। वस्तुतः यहीं उनके ‘बोधगया’ कहे जाने वाले काकड़ीघाट धाम में उनके ‘बोधिवृक्ष’ सदृश पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें उन्हें ‘समूचे ब्रह्मांड को एक अणु में दिखाने वाला’ ज्ञान प्राप्त हुआ और इस पुण्यधरा ने उन्हें एक साधारण कमउम्र साधु नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद और फिर राजर्षि विवेकानंद बनते हुए देखा।

उस दौर में सपेरों के देश माने जाने वाले भारत को दुनिया के समक्ष आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रवर्तित करने वाले युगदृष्टा राजर्षि विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट नाम के स्थान पर प्राप्त हुआ था। यानी सही मायनों में बालक नरेंद्र के राजर्षि विवेकानंद बनने की यात्रा देवभूमि के इसी स्थान से प्रारंभ हुई थी, और काकड़ीघाट ही उनका ‘बोध गया’ था। यहीं उनके अवचेतन शरीर में अजीब सी सिंहरन हुई, और वह वहीं ‘बोधि वृक्ष’ सरीखे पीपल का पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गऐ। इस बात का जिक्र करते हुऐ बाद में स्वामी जी ने कहा था, यहां (काकड़ीघाट) में उन्हें पूरे ब्रह्मांड के एक अणु में दर्शन हुऐ। यही वह ज्ञान था जिसे 11 सितंबर 1893 को शिकागो में आयोजित धर्म संसद में स्वामी जी ने पूरी दुनिया के समक्ष रखकर विश्व को चमत्कृत करते हुए देश का मानवर्धन किया। सम्भवतः स्वामी जी को अपने मंत्र ‘उत्तिष्ठ जागृत प्राप्यवरान्निबोधत्’ के प्रथम शब्द ‘उत्तिष्ठ’ की प्रेरणा भी अल्मोड़ा में ही मिली थी। उन्होंने हिन्दी में अपना पहला भाषण राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा में दिया था। 

स्वामी विवेकानंद व देवभूमि का संबंध तीन चरणों यानी उनके नरेंद्र होने से लेकर स्वामी विवेकानंद और फिर राजर्षि विवेकानंद बनने तक का था। वह चार बार देवभूमि आऐ। उनकी पहली आध्यात्मिक यात्रा अगस्त 1890 में एक सामान्य साधु नरेंद्र के रूप में गुरु भाई अखंडानंद के साथ नैनीताल में प्रसन्न भट्टाचार्य के घर पर छह दिन रूककर वे अल्मोड़ा की तरफ़ चल पड़े। जनपद के काकड़ीघाट में एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें यह आत्मज्ञान प्राप्त हुआ कि कैसे समूचा ब्रह्मांड एक अणु में समाया हुआ है।स्वामीजी ने उस दिन की अनुभूति की बात बांग्ला में लिखी, ” आमार जीवनेर एकटा मस्त समस्या आमि महाधामे फेले दिये गेलुम !’ यानी ‘आज मेरे जीवन की एक बहुत गूढ़ समस्या का समाधान इस महा धाम में प्राप्त हो गया है !’ यहां से आगे चलते हुए वह अल्मोड़ा की ओर बढ़े। कहते हैं कि अल्मोड़ा से पूर्व वर्तमान मुस्लिम कब्रिस्तान करबला के पास खड़ी चढ़ाई चढ़ने व भूख-प्यास के कारण उन्हें मूर्छा आ गई। वहां एक मुस्लिम फकीर ने उन्हें ककड़ी (पहाड़ी खीरा) खिलाकर ठीक किया। इस बात का जिक्र स्वामी जी ने शिकागो से लौटकर मई 1897 में दूसरी बार अल्मोड़ा आने पर किया। अल्मोड़ा में वह लाला बद्रीश शाह के आतिथ्य में रहे। यह स्वामी विवेकानंद का राजर्षि के रूप में नया अवतार था। इस मौके पर हिंदी के छायावादी सुकुमार कवि सुमित्रानंदन ने कविता लिखी थी:

‘मां अल्मोड़े में आऐ थे जब राजर्षि विवेकानंद, तब मग में मखमल बिछवाया था, दीपावली थी अति उमंग”

स्वामी जी अल्मोड़ा से आगे चंपावत जिले के मायावती आश्रम भी गऐ थे, जहां आज भी स्वामी जी का प्रचुर साहित्य संग्रहीत है। अल्मोड़ा में स्वामी जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम से मठ व कुटीर आज भी मौजूद है। बाद में उनके भाषणों का संग्रह ‘कोलंबो से अल्मोड़ा तक” नाम से प्रकाशित हुआ था। यहां काकड़ीघाट में आज भी उन्हें ज्ञान प्रदान कराने वाला वह बोधि वृक्ष सरीखा पीपल का पेड़ तथा आश्रम आज भी मौजूद है। वहीं 1898 में की गई अपनी तीसरी यात्रा के दौरान अल्मोड़ा में उन्होंने अपनी मद्रास से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत” का प्रकाशन मायावती आश्रम से करने का निर्णय लिया था।अल्मोड़ा के मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित दुर्गा के मंदिर-कसारदेवी की गुफा में वह ध्यान और साधना करते थे। देवलधार और स्याही देवी भी उनके प्रिय स्थल थे। उन्होने यहां कई दिनों तक एक शिला पर बैठ कर साधना की। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

स्वामी विवेकानंद के उत्तरांचल यात्रा के चार चरण: 

  1. अगस्त से सितम्बर 1890 जब वे एक अज्ञात सन्यासी नरेंद्र के रूप में यहाँ आए
  2. मई से अगस्त 1897 जब वे दक्षिण से उत्तर की यात्रा के बाद आए
  3. मई से जून 1898 जब वे कश्मीर हिमालय की यात्रा के क्रम में यहाँ आए
  4. दिसंबर से जनवरी 1901  जब वे अद्वैत आश्रम मायावती की यात्रा पर आए 

11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में आयोजित धर्म संसद में स्वामी जी द्वारा दिए गए भाषण के अंश व काकड़ीघाट से सम्बन्ध  ⇓

स्वामी विवेकानंद का भाषण ⇓

11 सितंबर, 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद का भाषण : अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।

मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है; और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है –

“जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।”

वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – “जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।”

सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

यह भी पढ़ें : देवभूमि के कण-कण में देवत्व: स्वामी विवेकानंद का ‘बोध गया’ : काकड़ीघाट

 

काकड़ीघाट स्थित स्वामी विवेकानंद के ‘बोधि वृक्ष’ के संरक्षण की उम्मीद बनी

नैनीताल। स्वामी विवेकानंद को 1890 में अपनी देवभूमि की पहली यात्रा में नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट स्थित शिवालय में पीपल का वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। हमने गत 21 जनवरी को उनके जन्म दिन युवा दिवस के मौके पर स्वामी विवेकानंद को गौतम बुद्ध की तरह ज्ञान दिलाने वाले इस स्थान को ‘बोध गया” एवं इस पीपल वृक्ष को ‘बोधि वृक्ष’ के रूप में संरक्षित किए जाने की आवश्यकता जताई थी। इस पर पहल हुई है। बतौर पंतनगर विवि के ‘इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन’ में विशेषज्ञ की हैसियत से शामिल कुलपति कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी ने काउंसिल को बतौर इस पीपल वृक्ष को ‘बोधि वृक्ष’ के रूप में संरक्षित किए जाने की संस्तुति की है। प्रो. धामी ने यह जानकारी देते हुए उम्मीद जताई कि उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाएगा। बताया कि ‘इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन’ पूर्व में गौतम बुद्ध के “बोधि वृक्ष” को संरक्षित करने का कार्य कर चुका है।

यह भी पढ़ें : स्वामी विवेकानंद के लिए एक मंच पर आए कुमाऊं व गढ़वाल विश्वविद्यालय

-संयुक्त रूप से लांच की उत्तराखंड में स्वामी विवेकानंद पर्यटन परिपथ पर डॉक्यूमेंट्री, दूरदर्शन पर भी दिखाई गई

नवीन समाचार, नैनीताल, 07 अक्टूबर 2020। उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट में प्राप्त ज्ञान से शिकागो में देश का नाम विश्वपटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद के लिए उत्तराखंड के कुमाऊं व गढ़वाल विश्वविद्यालय संभवतया पहली बार एक मंच पर आए। कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन में बुधवार को कुलपति प्रो. एनके जोशी ने गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल की उपस्थिति में वेबीनार के माध्यम से कुमाऊं एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से स्वामी विवेकानंद पर्यटन परिपथ विषय पर तैयार की गई डॉक्यूमेंटरी फिल्म को लांच किया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की प्रेरणा से भारत सरकार के ‘एक भारत श्रेठ भारत अभियान’ को समर्पित एवं डॉ. सर्वेश उनियाल के निर्देशन में बनी इस फिल्म का बुधवार शाम दूरदर्शन पर भी प्रसारण किया गया।
इस अवसर पर कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जोशी ने कहा कि विवेकानंद जी शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों में सनातन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा कर ‘मनुष्यों के निर्माण में विश्वास‘ रखते थे। उन्होंने विश्वास जताया कि इस डॉक्यूमेंटरी फिल्म के बनने से उत्तराखंड आने वाले पर्यटकों को विवेकानंद जी की यात्रा की पूरी जानकारी मिल पायेगी, साथ ही पर्यटकों के बढ़ने से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा। वहंीं हेमवती नंदन बहुगुणा गढवाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नौटियाल ने इस प्रयास की सराहना करने के साथ ही महात्मा गांधी की उत्तराखंड की यात्राओं के स्थानों को जोड़ते हुए इसी तरह का पर्यटन परिपथ बनाने का सुझाव भी दिया। विशिष्ट वक्ता के रूप में अपर खाद्य आयुक्त डॉ सुचिश्मिता देशपांडे ने दोनों विश्वविद्यालय के कुलपतियों को बधाई देते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन एवं उनके पर्यटन पथ पर आधारित वृत्तचित्र बनाने का यह अभूतपूर्व प्रयास देश में प्रथम है। विवेकानंद पीठ के सचिव एवं ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ क्लब के संयोजक प्रो. अतुल जोशी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद जी ने अपने संबोधन में कहा था कि इन पहाड़ों के साथ हमारी श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका कुछ भी बचा नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद की भाँति ही दोनों विश्वविद्यालयों के द्वारा सामूहिक रूप में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एवं महात्मा गांधी की उत्तराखंड यात्राओं पर आधारित डॉक्यूमेंटरी फिल्मों का भी निर्माण किया जायेगा। इस अवसर पर प्रो. एससी बागडी, प्रा.े ओपी बेलवाल, प्रो. एसके गुप्ता, प्रो. गिरीश रंजन तिवारी, विधान चौधरी, केके पांडे व मनोज पांडे सहित दोनों विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक एवं कर्मचारी वेबीनार में उपस्थित रहे।

यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार: स्वामी विवेकानंद के कुमाऊं से जुड़ाव पर यह बड़ी पहल करेगा कुमाऊं विवि

-कुलपति ने जतायी आगामी 3-4 जून को इस पर अंतिम निर्णय होने की उम्मीद

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 29 मई 2019। स्वामी विवेकानंद को 1890 में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में अल्मोड़ा जिले की सीमा पर स्थित काकड़ीघाट नाम के स्थान पर ही समूचे ब्रह्मांड के एक अणु में समाने का वह ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसे उन्होंने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में ‘मेरे प्यारे अमेरिका वासी भाइयों और बहनो’ के उद्बोधन से शुरू कर दुनिया भर को चमत्कृत करते हुए बांटा था। अब कुमाऊं विश्वविद्यालय स्वामी विवेकानंद के इसी ‘बोध गया’ सदृश स्थान पर उनके नाम से एक पीठ की स्थापना करने जा रहा है। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. केएस राणा ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ को बताया कि इन दिनों विवि में विभिन्न विषयों की ‘बीओएस’ यानी बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठकें चल रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इसी दौरान आगामी 3 या 4 जून को स्वामी विवेकानंद पीठ की स्थापना पर अंतिम निर्णय ले लिया जाएगा।
प्रो. राणा ने बताया कि मंगलवार को विवि के अल्मोड़ा परिसर से लौटते हुए वे काकड़ीघाट स्थित बाबा नीब करौरी के आश्रम में गये थे और वहां वृंदावन के मूल निवासी व अपने पूर्व परिचित महंत से मुलाकात हुई। उनसे स्वामी विवेकानंद के इस स्थान से जुड़े महात्म्य को जाना और तय किया कि स्वामी विवेकानंद से इतनी गहराई से जुड़े कुमाऊं मंडल के इस आध्यात्मिक स्थल पर कुछ कार्य किया जाना चाहिए। लौटने पर उन्होंने विवि के इतिहास एवं संस्कृति विभाग से इस मंडल में कार्य कर चुकी प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा एवं यहां अपनी कालजयी कृति गीतांजलि का काफी हिस्सा लिखने वाले देश के पहले नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर के स्थल रामगढ़ को शामिल करते हुए विवेकानंद सर्किट एवं विवेकानंद पीठ की स्थापना के लिए प्रस्ताव तैयार करें।

पूर्व में कुमाऊं विश्वविद्यालय कर चुका है टैगोर के नाम पर पीठ की स्थापना की घोषणा 
नैनीताल। स्वामी विवेकानंद का कुमाऊं मंडल के काकड़ीघाट के साथ ही अल्मोड़ा एवं मायावती आश्रम से गहरा संबंध रहा है। वे अपने छोटे से जीवन काल में चार बार कुमाऊं मंडल की यात्रा पर आये थे। इस आधार पर पूर्व में कुमाऊं मंडल विकास निगम भी पर्यटन प्रसार के दृष्टिकोण से विवेकानंद सर्किट बनाने की घोषणा कर चुका है। किंतु इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ी। वहीं जून 2014 में कुमाऊं विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने यूजीवी की 12वीं योजना के माध्यम से अध्ययन एवं शोध के लिए रवीेंद्र नाथ टैगोर के नाम पर पीठ की स्थापना करने की बात कही थी, लेकिन यह बात भी आगे नहीं बढ़ पाई थी।

 

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